स्वामी वील्हाजी कृत बत्तीस आखड़ी

स्वामी वील्हाजी कृत बत्तीस आखड़ी

 सेरा उठै सुजीव छाण जल लीजिये |दातण कर करै सिनान जीवाणि जल कीजिये ||
बैस एकांयत ध्यान नाम हरि पीजिये |रवि ऊगै तेहि बार चरण सिर दीजिये ||
गऊ घृत लेवो छाण होम नित ही करो |पंखे से अग्न जगाय फूंक देता डरो ||
सुतक पातक टाल छाण जल पीजिये |कर आतम को ध्यान आरती कीजिये ||
मुख बोली जै सांच झूठ नहीं भाखिये |नेम झूंठ सूं जाय जीभ बस राखियो ||
निज प्रसुवा गाय चुंगती देखिये |मुखां बताइये नाहीं और दिस पैंखिये ||
अमावस्या व्रत राख खाट नहीं सोइये |चोरी जारी त्याग कुदृष्ट नहीं जोइये ||
नेम धर्म गुरु कहै कदे नहीं छोड़िये |लाधी वस्तु पराई बोल देवोङिये ||
जीव दया नित राख पाप नहीं कीजिये |जांडी हिरण संहार देख सिर दीजिये |बधिया करै तो बेल जु देख छोड़ाइये ||
बरजत मारै जीव तहां मर जाइये |ऋतुवंती ह्ववै नार पलो नहीं छूइये |पांचू कपड़ा धोय न्हाय सुधि होइयै |
सुतक पातक अन्त धरहू लिपवाइयै |गऊ घृत सुध छाण जु होम कराइयै |जल छाणै दोय बार साँझ सवेरे ही |
जीवाणी जल जोड़ कुंवे जाय गेरही ||राख दया घट माही वृक्ष घावे नहीं |अमावस दिन धर्म इता नित पालिये |
गायर बच्छो बैल बेचन सू टालिये |पंथन चालै भूल खाट नहीं सोइयै |ऊखल खड़वै नाहीं चाकी नहीं झोइयै ||
वस्त्र धोवै नहीं सीस  नहीं धोइयै |जुवां लीखा नांव लिया पुन खोइयै |ओलै अमावस दूध दधी नहीं मथ्थिये |
साखी हरिजस गाय ज्ञान गुण कथ्थिये |दाती कसी गंडासी बाण नहीं बोइयै |धोबी चकरी ढेढ़ घरे नहीं जाइये |
चमारां घर जाय भूल करि बैठ हैं |नरक पङै निराधार रक्त में पैठ हैं |आन जात को पाणी भूल नहीं पीजिये |
बिन मांज्या बरतन कबहूँ नहिं लीजिये |चौके बिना रसोई कबहूँ मत करो |गउ बैठक शत ग्रेह करत तुम जन डरो |
ब्राह्मण दश प्रकार तिन शुद्व जानियै |अमल तमाखू भांग लील नहीं ठानिये |इंह ओगुण नहीं होय विप्र सुध है सही |
और छत्तीस पूंण एक सम गुरु कही ||वे अस्नाने कोय जो पलो लगावहीं |न्हाये तै सुध होय गुरु फरमावही ||
अपने घर में बैठ निन्दा नहीं कीजिये |देख्या सुण्या अदेख जू अजर जरीजियै |त्रिधा देवा शाध सुंसंग कीजिये |
गुरु ईश्वर की आण नहीं भानीजियै ||हल अरु गाठो गाडि बैल नहीं बाहिये |जीव मरै जेहि काम कदै न कराइये |
अमावस को दूध जू भूलन बलोंय हैं |कदेन उतरै पार रक्त सम होय हैं |होके पाणी आग कदे नहीं दीजिये |
अमल तंमाखू नाम भूल नहीं लीजिये |जुवां लीखा काढ छाह में डारिये |इन मारयां सुख होय पुत्र क्यूं नी मारिये |
घर को बकरों भेड़ थाट संग कीजिये |बेच्यो कुटयो बैल उलट नहीं लीजिये |तीस ऊपर दोय आखड़ी गुरु कहीं |
जो विश्नोई होय धर्म पाले सही ||गहै धर्म बत्तीस तीर्थ सब न्हाइया |अड़सठ  तीरथ पुण्य घरां चल आविया ||
गहै उनतीस बतीस विष्णु जानिये |इकसठ सातु छोत अड़सठ एहि मानिये |देखा देखि तीर्थ और नहीं कीजिये |
मन सुरती कूं जीत परम पद लीजिये |पाले गुरु का कवल जम्भगुरु ध्याव हैं |घाटो भूख कुरूप कदे नहीं आव हैं |
यह विधि धर्म सुनाय कह्हो गुरु जगत नै |अज्ञानी कूं डांस प्रिये ज्ञानी भक्त नै |


दोहा - या विधि धर्म सुनायके , किये कवल किरतार |
           अन धन लक्ष्मी रूप गुण ,मूवां मोक्ष दवार ||