|| सवैया ||
धन्यही जंगल समराथले, धन्य ही बाल ग्वाल |
जांके संग सतगुरु रम्यों, लालण लील भंवाल ||१||
हरि कंकेड़ी धन्य जंहा,प्रभु कियो प्रवेश |
रुखां बल रल आवणा, रमतो बाले भेष ||२||
परच्या पशु अरु पक्षियां, जीवां उत्तम जात |
हुआ पवित्र जोतसों, परची गुप्त न्यात ||३||
धन्य दिहाडों रेणही, प्रगट्यों गुरु संसार |
वील्ह कहे जे ओलख्यो तेहि उतर सी पार ||४||