विविध प्रकार की उन्नतीस नियम व्याख्या
।। चौपाई ।।
मास एक सूतक तुम मानों । पंचदिवस तक ऋतुमती जानों ।।
प्रातरुत्थाय करो सब स्नाना । पालो शील (शौच) तौष सुजाना ।।
दोनों काल की सन्ध्या मानी । मुनि जन गण यह साक्षी बखानी ।।
सन्ध्या कर काटो मन मैला । देश विभक्त गहौ पुन शैला ।।
सायंकाल विष्णु गुण गाओ । कर आरती परमानन्द पाओ ।।
प्रेम सहित सब होम कराओ । पुनः बैकुण्ठ बास सब पाओ ।।
अमृत पूत करो सब पाना । सम्यति एक करो मत नाना ।।
पूत करो वाणी सुख दायी । विष्णु भजन में होगी सहाई ।।
इन्धन छान बीन कर लेना । दृष्टि पूत बिन कहुं नहीं देना ।।
क्षमा दया उर में सब धारो । गुरु आज्ञा बिन सब को टारो ।।
गुरु जी जान कियो उपदेशा । धारण करो विष्णु आदेशा ।।
हेय करो चोरी अरु निन्दा । इन संग मिथ्या जानों धन्धा ।।
इन तीनों को बर्जो भाई । वाद विवाद न करियो कोई ।।
अमावस्या व्रत कबहूं न टारो। विष्णु भजन कर कुल निस्तारो।।
जीव दया राखो मन माहीं । जिहिं राखे सब अघ मिटि जाहीं।।
वृष आदि स्थावर सब सृष्टि । ब्रह्मरूप यह जान समष्टी ।।
इनमें नाना जीव विराजै। चेतन रूप सकल वपु छाजै ।।।
बिना विचारे नहीं इन्हें हरना । काट बाढ़ घर में नहीं धरना ।।
अजर क्रोध जो ताहिं जरावै । लोभादि को दूर भगावै ।।
निर अभिमानी ब्रह्मानन्दा । रहै मगन विचारै स्वै छन्दा ।।
जीवन मुक्त सदा वैरागी । जांकी लगन स्वर्ग से लागी ।।
अपने हाथ से पाक बनावै । पुनः एकांत बैठकर पावै ।।
अजा अवी सब अमर रखावै । वृषभ नपुंसक होने न पावै ।।
अमल तमाल भांग नहीं पीना । कर निषेध रहै सदा अदीना ।।
मद्य अरु मांस कभी न खावै । नीलाम्बर तन कबहुं न लावै ।।
दोहा -
उनतीस धर्म की आखड़ी, हिरदय धारै जोय ।