श्री साहबराम कृत धूप मन्त्र:

 श्री  साहबराम  कृत  धूप मन्त्र: 

महर करो महाराज महर कर महल पधारो |
त्रिकुटी भवन में दास के संकट टारो ||
धूप घृत मिष्ठान पाय प्रभु पाप निवारो |
जम्भ गुरु जगदीश संत के कारज सारो |
चोष लह्रा भक्ष भोज रस अचमन करो अघाय |
साहब ह्रदय संत के सदा रहो सुरराय ||१||
धूप लीजिये जलन धूप ले रूप समावो |
कृपा करो कर गहो हरि तुम हिरदे आवो |
वासुदेव विष्वेश विश्वधर ब्रह्मा रहवो |
ह्रदय ध्वांत कूं हरि ज्ञान उद्योत करोवो ||
ज्ञान अग्न जोग अग्न जठराग्न प्रचण्ड |
साहब ससितारा तड़ित तुंही तरुन मार्तण्ड ||२||
तुंही तेज तप करे निरंजन नाम धरावे |
ब्रह्मा तेज बल रचै विष्णु शिव पालन सावे ||
इंद्र तेज तप करे सप्त नवखण्ड बसावे |
शेष तेज लवलेश शीस ब्रह्माण्ड उठावे ||
तपही साध तपही ऋषि तप कर तेज अपार |
तप कर साहब अवनिपत तेजपुंज ततसार ||३||
शब्द रूप सोई जोत,जोत निहतन्त भनिजे |
अमितत सोई जोत, जोत सब हंस गिणिजे |
तेज शिला सोई जोत, निरंजन जोत जाणीजे |
हिरण्य गर्भ सोई जोत, जोत विराट तणीजे ||
महा तत्व ब्रह्मा विष्णु शिव सब ही जोत अपार |
दस चौबीसुं जोत है, साहब सो उर धार ||४||
महाजोत गुरु जम्भ भक्तं हित लीलाधारी |
सप्त वर्ष रहे मौन सप्त बीसुं गऊ चराई ||
इक्यावन कथ  ज्ञान शब्द अणभे अधकारी |
पच्चासी त्रिय मास तेज तप लाई तारी ||
आठम सोम अठोतरे पनरा से अवतार |
तिरानवे मिगसर वद नवमी साहब पहुंचे पार ||५||

कवित

ओउम प्रगटे जब रूप निरंजन,  यह जम्भेश्वर नाम कहावन को |
गेरूवां वस्त्र धर जाप जपै समराथल जाग जगावन को |
गुरु आप अखंडित एक भजे सब लोगन के समझावन को |
जिन पावन से महि किन्ही शुची, धन्यवाद सदा उन पावन को ||