छप्पय

|| छप्पय ||

श्री गुरु जम्भेश्वर शिष्य भक्त रणधीर भण्डारी |
सुवरण की जो सिलम, अक्षय पाई उपकारी  ||
तातें करि करि  दान, मान पायो मरुधर में |
कीरति लता अखूट, घणी पसरी घर-घर में ||
मन्दिर मुकाम विरच्यो महा, देखि दुष्ट जन जरि गए |
खल गरल खवायो तहितें ,तन तजि  ध्रुव यश कर गये ||