|| कवित - 1 ||
आदि अनादि युगादि को योगी, लोहट घर अवतार लियो हैं |
धन ही धन भाग बड़ो, जिन हांसल को हरिमत कह्यो हैं |
होत उजास प्रकाश भयो, जैसे रैन घटी अरु भोर भयो हैं |
कोटि दवादश काज के तांही, केशवदास भणे समराथल आय रह्यो हैं ||
|| कवित - 2 ||
जोगी जम्भ देव जटा जूट धारी शम्भू जैसे |
भव्य देह भ्राजत हैं भगवा सुभेष में |
परम प्रचण्ड दौर दंड दंभ खंडन को |
मंडन महान धर्म देशरू विदेश में |
ज्ञान की दशा तें उन्मत्त विष्णु भक्त भारी |
दत्त अवधूत जैसे देन उपदेश में |
शेष मे सुरेश में दिनेश में न ऐते गुण |
तेते गुण गुरु में विराजत विशेष में |