जाम्भोजी के मुख्य शिष्य रेड़ाजी का कथन (चौपाई)


जाम्भोजी के मुख्य शिष्य रेड़ाजी का कथन (चौपाई)

उनतीस धर्म की नीति चलाई । सब शिष्यन के मन में भाई ।।
विंशति नौ जब नियम बनाये । तब से ये विश्नोई कहाये ।।
जा भाजी ने पंथ चलाया । सन्मार्ग सबको दिखलाया ।।
शिखा सूत्र सबके उतराये । देख दशा ब्राह्मण घबराये ।।
जाति भेद सब दूर भगाया । अद्भुत मार्ग खूब दिखाया ।।
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य मुंडाए । सत्यगुरु के शरणै आये ।।
किये संस्कार सर्व के स्वामी । सकल गुरु जम्भानन्द नामी ।।
मद्य मांस सब के छुड़वाये । पाहल दे निज दास बनाये ।।
पुनः सबको यह कियो उपदेशा । हिल मिल रहना यही आदेशा।।।
उनतीस धर्म का कीजो मण्डन । कीजो काम क्रोध का खण्डन ।।
गुरु की बाणी बेद सम मानी । ताको पढ़ हो गये बहु ज्ञानी ।।
वाणी पढ़ लहो परमानन्दा । आन मतो का त्यागो फन्दा ।।
सत्यवादी निरमान कहावै । अद्वै अमल ब्रह्म गुण गावै ।।
जीतो संग दोष सब भाई । ब्रह्म विद्या की करो बड़ाई ।।
निवृत करो खोटे सब कामा । विष्णु पुरी में करो विश्रामा ।।
हानि-लाभ में सुख-दु:ख नहीं पाना । कर सन्तोष विष्णु गुण गाना ।।
जम्भ-2 पुनः जम्भ जी गाओ । निश्चय निकट जम्भ पद पाओ ।।
न तहां चद्र सितारे भानू । न तहां अग्नि विद्युत जानू ।।
उसी धाम में जम्भ विराजै । सर्वाधार सकल मन राजै ।।
मन का मन पुनः सर्वाधारा । रह सर्व में सब से न्यारा ।।
कारण से कारज उपजाया । कर पैंदा सबको दिखलाया ।।
यह सब जानों जम्भ पसारा । जम्भ न बन्धा बन्धा संसारा ।।
अद्वय अजर जम्भ अविनाशी । जिन यह सारी सृष्टि प्रकाशी ।।
जम्भजी सद्गुरु एकोंकारा । भजो ताहि जो कटै विकारा ।।
वेद पुराण विष्णु गुण गावै । नेति नेति कह भेद न पावै ।।
विष्णु जगद्गुरु सिरजनहारा । ले अवतार मनुज तनधारा ।।
दासन के तिन कारज सारे । दे उपदेश अधम जन तारे ।।
विष्णु ही पूर्ण परम विधाता।  बिन विष्णु को नहीं जग त्राता ।।
लाहट घर हरि लीन्ह अवतारा । प्रमर गोत्र का मुकुट सितारा ।।
केसर मात कृतार्थ कीन्हीं । अलभ्य मुक्ति प्रभु ताको दीन्हीं ।।
और अनेक भक्त प्रभु तारे । काम क्रोध शत्रु सब मारे ।।
इसी अर्थ प्रभु लीन्ह अवतारा । भक्तन का शत्रु दल मारा ।।
अजर अमर गुरु जम्भ संन्यासी । पूर्ण ब्रह्म सकल घटवासी ।।
परमानन्द सकल अघ जारण । आयो जंभ सकल जग तारण ।।
मुनि जन सब बांके गुण गावैं । धर्म अर्थ मुक्ति फल पावैं ।।
योग समाधि आप प्रभु लावैं । सब शिष्यन को योग सिखावैं ।।
धारणा ध्यान समाधि बतावैं । प्रत्याहार खूब समझावैं ।।
यम और नियम की बात सिखावें । प्राणायाम खूब बतलावैं ।।
इन आठन का करै विस्तारा । जम्भगरु जग सिरजन हारा ।।
वैर भाव सब से छुड़वायो । भाषण सत्य सबन समझायो ।।
ब्रह्मचर्य सब का रखवावै । सब से चोरी त्याग करावै ।।
सबके विषय विकार मिटावै । यही अपरिग्रह अर्थ बतावै ।।
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