सबद-97


सबद-97

ओ३म् विष्णु-विष्णु तू भण रे प्राणी । जो मन मानै रे भाई ।। दिन का भूला रात न चेता । कांय पड़ा सूता आस | किसी मन थाई ।। तेरी कुड़ काची लगवाड़ घणो छै ।  कुशल किसी मन भाई ।। हिरदै नाम विष्णु को जंपो । हाथे करो टवाई ।। हरि परहर की आंण न मानी । भूला भूल जपी महमाई ।। पाहन प्रीत फिटा कर प्राणी । गुरु बिन मुक्त न जाई ।। पंच क्रोड़ी ले प्रहलाद उतरियो । जिन खर तर करी कमाई । सात क्रोड़ी ले राजा हरिचंद उतरियो । तारादे रोहिताश हरिचन्द हाटोहाट बिकाई ।। नव क्रोड़ी राव युधिष्ठिर ले उतरियो । धन-धन कुन्ती माई ।। बारा क्रोड़ समाहन आयो । प्रहलादा सू वाचा कवल जु थाई ।। किसकी नारी बस्त पियारी । किसका बहिन रू भाई ।। भूली दुनियां मर मर जावै । ना चीन्हों सुरराई ।। पाहण नाऊं लोहा सक्ता । नुगरा चीन्हत कांई ।।९७।।