सबद – 75
ओ३म् जोगी रे तू जुगत पिछांणो । काजी रे तू कलम कुरांणी ।। गऊ बिणासो कांहे तानी । राम रजा क्यूँ दीन्हीं दानी ।। कान्ह चराई रनबे वांनी । निरगुन रुप हमें पतियानीं ।। थल शिर रह्या अगोचर बानी । ध्याय रे मुंडिया पर दानी । फीटा रे अण होता तानी । अलख लेखो लेसी जानी ॥७५॥