सबद-15


सबद-15

        ओ३म् सुरमां लेणा झींणा सबदूँ। म्हे भूल न भाख्या थूलूं ।। सो पति बिरखा सींच प्राणी । जिहिं का मीठा मूल समूलूँ ।। पाते भूला मूल न खोजो । सींचो कांय कु मूलूँ ।। विष्णु-विष्णु भण अजर जरीजै । यह जीवन का मूलूँ ।। खोज प्रांणी ऐसा बिनाणी । केवल ज्ञानी ।। ज्ञान गहीरूं ।। जिहिं के गुणे न लाभत छेहूं ।। गुरु गेंवर गरबा शीतल नीरूं । मेवा ही अति मेऊं ।। हिरदै मुक्ता कमल संतोषी । टेवा ही अति टेऊं ।। चढ़ कर बोहिता भव जल पार। लंघावै । सो गुरु खेवट खेवा खेहूं।।१५।।।